सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपनल कर्मचारियों से जुड़ी सभी पुनर्विचार याचिकाओं को एक साथ खारिज कर दिया गया है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि 15 अक्तूबर 2024 के अपने आदेश में कोई विधिक त्रुटि नहीं है, इसलिए पुनर्विचार का प्रश्न ही नहीं उठता। यह निर्णय अब इस मुद्दे को न्यायिक रूप से अंतिम रूप देता है।

सच यह है कि उपनल कर्मियों का संघर्ष वर्षों से जारी है। 2018 के हाईकोर्ट के आदेश जिसमें चरणबद्ध नियमितीकरण का मार्ग सुझाया गया था पर अमल कानूनी खींचतान में अटक गया। बाद में दायर सभी विशेष अनुमति और पुनर्विचार याचिकाएँ अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त की जा चुकी हैं। अब सवाल यह नहीं कि अदालत क्या कहती है, सवाल यह है कि सरकार आगे क्या करती है।

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वर्तमान धामी सरकार ने संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों के विषय में पिछले वर्षों में कई सकारात्मक निर्णय लिए हैं। यही कारण है कि उपनल कर्मियों में यह उम्मीद बनी हुई है कि सरकार अब इस मामले को “कानूनी जटिलता” नहीं, बल्कि एक मानवीय और व्यावहारिक विषय के रूप में लेगी। उपनल कर्मचारी राज्य की स्वास्थ्य और तकनीकी सेवाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे न्यूनतम सुरक्षा और सीमित अधिकारों के बावजूद वर्षों से निरंतर सेवा दे रहे हैं। अब जब न्यायिक मार्ग पूरी तरह बंद हो गया है, तो अपेक्षा स्वाभाविक है कि सरकार नीतिगत समाधान की दिशा में कदम बढ़ाए।

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यह निर्णय सरकार की जिम्मेदारी और भी बढ़ा देता है कानून का सम्मान भी, और हजारों परिवारों के भविष्य की सुरक्षा भी।
धामी सरकार यदि इस प्रश्न पर संवेदनशील और दूरदर्शी फैसले लेती है, तो यह न केवल उपनल कर्मियों के संघर्ष का अंत होगा, बल्कि एक बड़ी प्रशासनिक सुधार की शुरुआत भी।

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उत्तराखंड उपनल संविदा कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री प्रमोद सिंह गुसाईं के मुताबिक न्यायमूर्ति विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि पूर्व में 15 अक्तूबर 2024 को पारित आदेश में किसी भी तरह की स्पष्ट त्रुटि नहीं है, इसलिए उसके पुनर्विचार का कोई आधार नहीं बनता।उपनल कर्मचारियों के मामले में हाईकोर्ट के वर्ष 2018 के फैसले में कहा गया था कि कर्मचारियों को चरणबद्ध तरीके से नियमित किया जाए।

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