चिकित्सा विज्ञान की दिशा में श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल, देहरादून ने एक और उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। अस्पताल में दिमाग में खून का थक्का क्रोनिक सबड्यूरल हेमेटोमा (Chronic Subdural Hematoma) जमने की जटिल स्थिति का इलाज आधुनिकतम तकनीक मिडिल मेनिंजियल आर्टरी एम्बोलाइजेशन (MMAE) द्वारा किया गया। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के न्यूरोसर्जरी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. महेश रमोला के नेतृत्व में दो मरीजों पर इस नवीनतम तकनीक से सफल प्रोसीजर किए गए। यह प्रोसीजर पारंपरिक सर्जरी की तुलना में ज्यादा सुरक्षित और न्यूनतम इनवेसिव है। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के चेयरमैन श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने इस सफलता पर चिकित्सकों की टीम को बधाई एवं शुभकामनाएं दीं।

क्या है क्रोनिक सबड्यूरल हेमेटोमा?

क्रोनिक सबड्यूरल हेमेटोमा (cSDH) मस्तिष्क से संबंधित एक गंभीर लेकिन आम न्यूरोसर्जिकल समस्या है, जिसके इलाज के लिए अक्सर खोपड़ी की हड्डी को काट कर ब्रेन सर्जरी करनी पड़ती है। जैसे-जैसे बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, इस रोग के मामलों में भी लगातार वृ‌द्धि हो रही है

यह बीमारी सामान्यतः सिर पर हल्की चोट लगने के बाद धीरे-धीरे विकसित होती है, विशेषकर बुजुर्गों में। इसमें मस्तिष्क के ऊपर खून जमा हो जाता है, जो समय के साथ दबाव बनाता है। इसके लक्षणों में सिरदर्द, मिचली या उल्टी, हाथ-पैर में कमजोरी, चलने में परेशानी, भूलने की आदत, चिड़चिड़ापन, सुस्ती, बोलने में कठिनाई, और कभी-कभी चेतना में कमी या बेहोशी भी शामिल हो सकती है क्रोनिक सबड्यूरल हेमेटोमा के पारंपरिक इलाज में खोपड़ी की हड्डी का टुकड़ा हटाकर हेमेटोमा साफ किया जाता है। लेकिन यह देखा गया कि 30-50% प्रतिशत मामलों में इलाज असफल (treatment failure) हो जाता है तथा मस्तिष्क में फिर से रक्तस्राव (Rebleeding), खून का थक्का दोबारा जमने की आशंका रहती है, और बार-बार ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ती है। इससे मरीज की हालात में गिरावट, हाथ या पैर में कमजोरी बढ़ जाना, गंभीर अपंगता, या जान का जोखिम भी हो सकता है। बुजुर्ग या ब्लड थिनर दवा लेने वाले मरीजों में फिर से खून बहने का खतरा अधिक होता है।
क्या है MMAE तकनीक?

ये भी पढ़ें:  मेयर सौरभ थपलियाल ने आर्मी/सेना जवानों साथ किया पौधारोपण

MMAE एक अल्ट्रा मॉडर्न, मिनिमल इनवेसिव (minimally invasive) प्रोसीजर है, जिसमें सिर की खोपड़ी या शरीर के किसी अन्य हिस्से में कोई बड़ा चीरा नहीं लगाया जाता, ना ही कोई टाँके लगाने की ज़रूरत पड़ती है। यह प्रक्रिया बारीक कैथेटर या सुई के माध्यम से होती है। इसमें एक पतली कैथेटर के ज़रिये उस धमनियों (Middle Meningeal Artery) में दवा डाली जाती है जो इस बीमारी में खून के रिसाव का कारण बनती हैं। यह प्रक्रिया, कम समय में होती है और मस्तिष्क में फिर से रक्तस्राव, खून का थक्का दोबारा जमने की संभावना कम होती है। यह प्रक्रिया खासकर बुजुर्ग मरीजों और उच्च जोखिम वाले मरीजों के लिए एक वरदान साबित हो रही है। यह अत्य आधुनिक चिकित्सा पद्धति सुरक्षित और प्रभावी मानी जाती है। फरवरी 2025 में, दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित और उच्चतम इम्पैक्ट फैक्टर वाली मेडिकल जर्नल NEJM (न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन) ने एक मल्टीसेंटर रैंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल प्रकाशित किया, जिसमें MMAE के सकारात्मक परिणाम प्रमाणित हो चुके हैं। इस तकनीक से उपचार के बाद मरीज को सामान्य सर्जरी के मुकाबले कम समय के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है, और रिकवरी भी तेज होती है।

ये भी पढ़ें:  बीकेटीसी अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी नें अपने पैतृक गांव खोबरा (यमकेश्वर)पहुँच कर किया मतदान, कहा ग्रामीण जनता का एक वोट रखता हैं गांव की तस्वीर बदलने की शक्ति

क्यों है यह उपलब्धि खास?

MMAE की सुविधा भारत के केवल कुछ चुनिंदा चिकित्सा केंद्रों में नियमित रूप से उपलब्ध है, जहाँ एंडोवैस्कुलर और न्यूरोसर्जिकल दोनों सुविधाएँ एक साथ सुलभ रूप से मौजूद होती हैं।

श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल अब देश के उन गिने-चुने प्रतिष्ठित संस्थानों में शामिल हो गया है जहाँ यह अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है।

ये भी पढ़ें:  प्राचीन शिवमन्दिर धर्मपुर में श्रावण माह के शुभ अवसर पर चल रही कथा

इससे उत्तराखंड और समीपवर्ती क्षेत्रों के मरीजों को अत्याधुनिक चिकित्सा का लाभ मिल सकेगा, जो अब तक ज्यादातर बड़े मेट्रो शहरों तक ही सीमित थी।

प्रोफेसर डॉ. महेश रमोला महेश रमोला ने बताया कि

“हमारी टीम ने सर्जरी के पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ अब विज्ञान आधारित नई तकनीकों को भी अपनाया है ताकि मरीजों को कम जोखिम में बेहतर इलाज मिल सके। MMAE के द्वारा हम उन मरीजों को भी मदद पहुंचा सकते हैं जो ऑपरेशन के लिए फिट नहीं हैं।”

इस प्रक्रिया में निम्नलिखित डॉक्टरों और स्टाफ की टीम सक्रिय रूप से शामिल रही:

डॉ. महेश रमोला, डॉ. शिव करण गिल, रितिश गर्ग, डॉ. निशित गोविल, डॉ. हरिओम खंडेलवाल, डॉ. दिविज ध्यानी, अनुज राणा, भुवन, विपेन, मनीष भट्ट, मुकुल एवं अंकित । उनके समर्पण और सामूहिक प्रयास से यह जटिल प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न हो सकी।” डॉ पंकज अरोड़ा वरिष्ठ न्यूरो सर्जन एवम डॉ विभू शंकर न्यूरो सर्जन का भी विशेष सहयोग रहा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *