भारत में यूं तो हर त्यौहार अपने आप में गूढ़ रहस्यों को समेटे हुए हैं लेकिन इस त्यौहार से जुड़ी भ्रांतियां और लोक कहानियां इसकी उत्पत्ति का मूल कारण समझाने के लिए काफी नहीं है।त्योहारों को धार्मिक आयाम से देखा जाना जितना महत्वपूर्ण है उससे भी महत्वपूर्ण है उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाना ताकि त्योहारों को मौजमस्ती या रूढ़िवाद का नाम देने वाली पीढ़ी के के ज्ञान चक्षु खोले जा सकें।। प्राचीन लोगों द्वारा निर्धारित कुछ अनुष्ठानों को केवल अनुष्ठान के रूप में स्वीकार करने और इसे विज्ञान न मानने से इनकार करना इस तथ्य से इनकार है कि विज्ञान और धर्म अलग हैं। वेदों द्वारा जनित परम्पराएँ विज्ञान से अलग नहीं बल्की इन्हें इनके वास्तविक रूप में विज्ञानं से जोड़कर यदि हम स्वीकारें तो हमारे हित के अलावा इसमें कुछ भी नहीं| भारत की पवित्र भूमि में अनुष्ठान और परम्पराएँ अच्छे स्वस्थ्य और प्रकृति के अनुकूलन को बनाये रखने के अनुरूप हैं|जैसे कि करवा चौथ;
चंद्रमा का मानव शरीर पर ठीक वैसे ही प्रभाव पड़ता है जैसे महासागरों पर। यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य/मनोदशा के अलावा हमारे सोने के तरीके और भूख को भी प्रभावित करता है। क्या आप जानते हैं कि जैसे-जैसे पूर्णिमा आती है हमें अधिक भूख लगती है? और यह भूख धीरे-धीरे कम हो जाती है क्योंकि चंद्रमा कम होने लगता है। करवाचौथ शरद पूर्णिमा के चौथे दिन पड़ता है। यह भूख को नियंत्रित करने के साथ-साथ उपवास के माध्यम से अपने शरीर को नियंत्रित करना आसान बनाता है। उपवास ऊर्जा पैदा करने में जमा चर्बी को तोड़ने में मदद करता है। यह हमारे अंगों से विषाक्त पदार्थों को निकालता है जिससे शरीर की सफाई में सहायता मिलती है। यह प्रजनन शक्ति को नियमित करता है, प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है और रजोनिवृत्ति में देरी करता है। विलंबित रजोनिवृत्ति अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ों के लिए एक सक्रिय जीवन प्रस्तुत करती है। इसके अलावा, यह स्वस्थ कोशिकाओं, अंगों और ऊतकों के लिए प्रोटीन संश्लेषण की उच्च दक्षता के कारण उपचार प्रक्रिया को तेज करता है।

एक और बात हमारे पहाड़ों में करवा चौथ मनाने की परंपरा प्राचीन समय में नहीं थी उसका भी एक कारण है पहाड़ की मेहनतकश महिलाओं को अपनी दिनचर्या के अनुरूप उपवास की आवश्यकता नहीं थी या यूं कहें कि उनके स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह ठीक नहीं था। पहाड़ की भौगोलिक और आर्थिक दृष्टिकोण पर आधारित हमारे ऐसे बहुत सारे त्यौहार है जो यहां की जन सभ्यता के लिए उचित हैं लेकिन आज एक दूसरे की देखा देखी जिस प्रकार से हर कोई करवा चौथ का व्रत ले रहा है वह पूर्ण रुप से सारगर्भित प्रतीत नहीं होता है। त्यौहार कोई भी हो उसको मनाना आपका व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है लेकिन आप जिस समाज से आते हैं उसकी परंपराओं का और संस्कृति का निर्वहन करना भी आपका दायित्व बन जाता है।त्योहार है, खुशियां फैलाइए , स्वस्थ रहिए, स्वयं को भी महत्वपूर्ण बनाइए तभी आप सामने वाले को भरपूर प्रेम और स्नेह बांट पाएंगे। इसी में करवा चौथ की सार्थकता है।
विभा पोखरियाल नौडियाल

नोट: लेखक के व्यक्तिगत विचार है

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