5 अप्रैल 2025 को वक्फ संशोधन बिल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद कानून बन गया। इस बिल को 3 अप्रैल को लोकसभा में 288-232 वोटों से और 4 अप्रैल को राज्यसभा में 128-95 वोटों से पारित किया गया था। लेकिन उसी दिन AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने इस कानून को रद्द करने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनके साथ-साथ इस कानून के खिलाफ कुल 72 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं।

सवाल उठता है: क्या सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के बनाए कानून को रद्द कर सकता है? क्या उसके पास इतनी ताकत है कि वह संसद के दोनों सदनों और राष्ट्रपति की मंजूरी से बने कानून को पलट दे? इसका जवाब है- हां।

सुप्रीम कोर्ट की शक्ति
भारत में सुप्रीम कोर्ट संविधान का रक्षक है। उसका काम यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी कानून संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन न करे। अगर कोई कानून संविधान के खिलाफ पाया जाता है, तो सुप्रीम कोर्ट उसे असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर सकता है। हालांकि, इसके लिए याचिकाकर्ताओं को यह साबित करना होता है कि कानून संविधान की भावना के साथ छेड़छाड़ करता है।

ये भी पढ़ें:  निर्माणाधीन भवन हुई चोरी की घटना का दून पुलिस ने किया खुलासा

वक्फ संशोधन कानून को चुनौती का आधार
वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। इस अनुच्छेद के तहत हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने का अधिकार है। इसके अलावा, धार्मिक संस्थानों और संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार भी मिलता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना या प्रबंधन में बदलाव करना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

इसके साथ ही, यह कानून अनुच्छेद 26 (धार्मिक समुदायों को अपने संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार), अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30 (अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार) का भी उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह कानून अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कमजोर करता है।

ये भी पढ़ें:  टूरिस्ट विलेज सारी ग्रामीण पर्यटन का सफल उदाहरण बना रुद्रप्रयाग का सारी गांव

पहले भी रद्द हुए हैं कानून
यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार के किसी कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई हो। पिछले 10 सालों में मोदी सरकार के 10 से ज्यादा कानूनों की वैधता पर सवाल उठे हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले इस प्रकार हैं:

अनुच्छेद 370 (2019): जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। हालांकि, कोर्ट ने सरकार को जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द बहाल करने और सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया।
इलेक्टोरल बॉन्ड (2024): सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया और इसे सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन बताया। कोर्ट ने तत्काल इस पर रोक लगाई और भारतीय स्टेट बैंक को बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA): सुप्रीम कोर्ट ने CAA पर रोक लगाने से इनकार किया और इसकी धारा 6A की वैधता को 4-1 के बहुमत से बरकरार रखा। यह मामला अभी भी विचाराधीन है।
कृषि कानून (2021):सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, और मूल्य आश्वासन कानून पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने इन कानूनों को कॉरपोरेट हितों के पक्ष में बताया. उसने कहा कि इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुरक्षा को खतरा है और यह भी कहा कि कृषि राज्य का विषय है
सुप्रीम कोर्ट के पास केंद्र सरकार के कानूनों को रद्द करने की पूरी शक्ति है, यदि वे संविधान का उल्लंघन करते हों। वक्फ संशोधन कानून के मामले में भी कोर्ट यह जांचेगा कि क्या यह कानून संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करता है। पिछले एक दशक में कई कानूनों को चुनौती मिली और सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के रक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभाई। अब वक्फ कानून का भविष्य भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिका है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *